सोमवार 3 नवंबर 2025 - 23:32
भोजन और पानी की कमी के करण,गज़्ज़ा में लोगो की सांसें थम रही हैं।संयुक्त राष्ट्र

हौज़ा / संयुक्त राष्ट्र की राहत एजेंसी UNRWA ने चेतावनी दी है कि इज़राइली घेराबंदी के कारण ग़ाज़ा में भुखमरी तेजी से फैल रही है और नवजात शिशुओं व छोटे बच्चों को भूख और पियासे सोना पड़ रहा है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,फ़िलिस्तीनियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी ने कहा है कि इज़रायल द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के कारण फ़िलिस्तीनियों को भोजन और पानी की तीव्र कमी का सामना करना पड़ रहा है।एजेंसी ने कहा कि हर नागरिक के लिए सुरक्षित तरीके से साफ़ पानी पहुंचना अनिवार्य है, और उसने गज़ा में लगभग दो लाख पचास हज़ार बेघर फ़िलिस्तीनियों को पानी उपलब्ध कराना है।

एजेंसी ने बताया कि ग़ाज़ा में हज़ारों परिवार अभी भी खाने, पानी और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं की कड़ी कमी से जूझ रहे हैं क्योंकि इज़रायल ने मानवीय सहायता की आपूर्ति पर सख्त पाबंदियाँ लगा रखी हैं।

स्पष्ट रहे कि इज़रायल और हमास के बीच युद्ध-विराम समझौता हो चुका है, फिर भी समझौते के बावजूद इज़रायली पक्ष की तरफ़ से उल्लंघन जारी हैं।

इज़रायली सैनिक ग़ाज़ा के विभिन्न इलाकों पर हमले कर रहे हैं, और साथ ही सीमा चौकियों को बंद करके सहायता पहुँचने की अनुमति भी नहीं दी जा रही। इज़रायली बमबारी ने पानी और सीवरेज जैसी बुनियादी आबकारी ढाँचों को नष्ट कर दिया है।

जैसे-जैसे हजारों परिवार अपने तबाह हुए इलाकों में लौट रहे हैं, वे तीव्र प्यास और पीने के पानी की पूर्ण रोक के चलते जीवन-मरण की जद्दोजहद में हैं। उन्हें असुरक्षित और सीमित स्रोतों पर निर्भर होना पड़ रहा है। नल बंद होने के बाद नागरिक मजबूर हैं कि वे महँगे टैंकरों या छोटे डीसैलेनेशन प्‍लांटों से पानी खरीदें, जो मुश्किल से अस्थायी जनरेटरों पर चलते हैं। ये क़ीमतें उन परिवारों की पहुँच से बाहर हैं जिनकी आजीविका युद्ध में ख़त्म हो चुकी है।

तबाह गलियों और रास्तों में पुरुष, महिलाएँ और बच्चे भारी धूप में पानी की बोतलें उठाकर कई किलोमीटर चलते दिखाई दे रहे हैं। पानी की तलाश उनके लिए एक दर्दनाक रोज़मर्रा की जंग बन चुकी है। ज़्यादातर घरों में पानी को बूँद-बूँद बाँटा जाता है ताकि केवल पीने और खाना पकाने की ज़रूरतें पूरी हो सकें; नहाने या कपड़े धोने का तो सवाल ही नहीं उठता। ग़ाज़ा का यह पानी संकट अब एक भयावह मानवीय त्रासदी बन चुका है जहाँ पानी सिर्फ़ एक बुनियादी ज़रूरत नहीं रहा, बल्कि जीवित रहने की लड़ाई बन गया है।

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